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जब न्याय ने मुँह मोड़ा: एक दलित लड़की की दर्दनाक कहानी

 अन्याय की अंधी गली

गाँव के सन्नाटे में, जहाँ रात की खामोशी भी चुभती थी, एक दिल दहला देने वाली घटना ने सब कुछ बदल दिया. रोशनी, एक युवा चमार लड़की, अपने घर के आँगन में अकेली बैठी थी. उसके मन में भविष्य के सपने पल रहे थे, पर उसे क्या पता था कि उस रात उसकी दुनिया हमेशा के लिए बदलने वाली है.

गाँव का ठाकुर, अपनी अकड़ और ताकत के नशे में चूर, उसी रात रोशनी के घर में घुस आया. उसने रोशनी की चीखें अनसुनी कर दीं, उसकी गुहारों को रौंद डाला और अपनी क्रूरता से उसकी पवित्रता को तार-तार कर दिया. रोशनी की आत्मा लहूलुहान हो गई, उसका शरीर काँप रहा था, पर उससे ज़्यादा उसका मन टूटा था.

सुबह हुई तो रोशनी ने हिम्मत जुटाई और अपने परिवार को आपबीती सुनाई. माँ-बाप का कलेजा फट गया. वे जानते थे कि उनकी बेटी के साथ जो हुआ है, वह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि उनकी पूरी पहचान पर हमला है. उन्होंने ठान लिया कि वे रोशनी को न्याय दिलाकर रहेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े.

वे रोशनी को लेकर थाने पहुँचे. पुलिस अधिकारी के सामने रोशनी ने काँपते हुए पूरी घटना सुनाई. उसके आँसुओं ने उसकी पीड़ा बयाँ कर दी थी. पर पुलिस ने उसकी बात पर यकीन करने के बजाय, उसे ही शक की निगाह से देखा. "तुम पर ही इल्ज़ाम क्यों लगेगा? कहीं तुम ही तो ठाकुर को फँसा नहीं रही?" पुलिस अधिकारी ने उसे डाँटते हुए कहा.

ठाकुर का प्रभाव इतना गहरा था कि पुलिस ने फौरन उसकी बात मान ली. रोशनी की शिकायत दर्ज करने के बजाय, पुलिस ने उसे और उसके परिवार को धमकाना शुरू कर दिया. "अगर तुमने यह शिकायत वापस नहीं ली, तो हम तुम्हें ही जेल में डाल देंगे. तुम्हारी इज़्ज़त तो गई ही है, अब जेल भी जाओगे."

डर और अपमान से रोशनी का परिवार टूट गया. उन्हें लगा कि कानून, जिसका काम उन्हें न्याय दिलाना था, वही उनके खिलाफ खड़ा हो गया है. पुलिस ने उन्हें बेवजह परेशान किया, उन पर झूठे आरोप लगाए और उन्हें कई दिनों तक थाने में बिठाकर रखा. उन्हें गाँव छोड़ने पर मजबूर किया गया, ताकि यह मामला दब जाए.

रोशनी और उसके परिवार को न्याय नहीं मिला. उन्हें सज़ा मिली—अपराध का नहीं, बल्कि अपनी पहचान और जाति का. यह घटना सिर्फ रोशनी की नहीं थी, बल्कि उन अनगिनत लोगों की थी, जिन्हें जाति और ताकत के आगे झुकना पड़ा. यह एक ऐसी दर्दनाक कहानी है जो बताती है कि कैसे कुछ जगहों पर आज भी न्याय की आँखें अंधी हैं, और कैसे गरीब और हाशिए पर खड़े लोगों को अपने हकों के लिए एक अंतहीन लड़ाई लड़नी पड़ती है.


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