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सर्फ़ एक्सेल टाइप इस डिटर्जेंट पाउडर के फार्मूले का वर्णन हम अंत में इसलिए कर रहे है कि आप शायद ही यह प्लांट लगा सके ;क्योकि इसके लिए आपको हजारो वर्ग मीटर स्थान 100 करोड़ से ज्यादा रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी |सबसे छोटा यूनिट लगाने पर भी चालीस से पचास करोड़ रूपए लग ही जायेंगे |
पेस्ट को सुखाकर नहीं ,बल्कि उसका पतला घोल बनाकर तथा उस घोल को ढाई सौ से लेकर चार सौ डिग्री सेंटीग्रेट गर्म कमरे में विद्युत् संचालित हैवी ड्यूटी फव्वारों से बूंदों के रूप में उड़ाकर सुखाया जाता है | घोल तैयार करने के लिए दो हजार से लेकर पाच हजार लीटर की क्षमता की चार-पांच अथवा अधिक बालमिलो का प्रयोग किया जाता है | छोटी बालमिलो के समान ही इस बालमिल का ड्रम अपने आधार पर दस से पंद्रह चक्कर प्रति मिनट घूमता है |
ड्रम में कुल क्षमता की लगभग 20 प्रतिशत स्टील की चार पांच सेंटीमीटर व्यास की गोलिया पड़ी रहती है | फार्मूले में दिए गए सभी रचक निश्चित अनुपात में इस ड्रम में डाल दिए जाते है और ड्रम का ढक्कन बंद कर मशीन चालु कर दि जाती है | ड्रम के घुमने पर उसमे भरे रचक और गोलियां अनियंत्रित गति से लोटपोट होने लगती है ,अतः सभी रचक आपस में घुलने-मिलने ,पीसने आदि होने लगते है |
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फास्फेटो में मैल काटने की सर्वाधिक क्षमता ट्राई सोडियम फॉस्फेट में होती है |यद्यपि यह महंगा होता है ,परन्तु इसका प्रयोग करते समय बीस प्रतिशत तक कम neutralize एसिड स्लरी तो मिलाई ही जाती है ,मैल काटने वाले अन्य रसायन भी मिलाना अनिवार्य नहीं है |दोस्तों गीली विधि से तैयार किये जाने वाले किसी भी डिटर्जेंट में सोडा ऐश का प्रयोग नहीं होता ;क्योकि पानी के संपर्क में आते ही तीव्र प्रतिक्रिया करने के बाद सोडा सामान्य मिट्टी बनकर रह जाता है ,परन्तु ट्राई सोडियम फॉस्फेट के साथ प्रयोग करने पर सोडा ऐश सामान्य मिट्टी न बनकर अपनी रासायनिक प्रक्रिया द्वारा मैल काटने की शक्ति और अधिक बढ़ा देता है |
1.ट्राई सोडियम फॉस्फेट (T.S.P.)-500kg.
2.सोडा ऐश (Soda ash)-170kg.
3.सोडियम सिलिकेट (sodium silicate)-100kg.
4.डोडीसाइल बेंजीन सल्फोनिक एसिड (D.D.B.S) -200kg.
5.कार्बोक्सी मिथाइल सेल्यूलोस (C.M.C.)-20kg.
6.ऑप्टिकल व्हाइटनर (Optical Whitener)-2kg.
7.एसिड ब्लू डाई (Acid blue)-500gm.
8.ताज़ा पानी (Fresh water)-120 liter.
सिलिकेट को पचास लीटर पानी में कड़ाही में गरम करके घोलने तथा झाग हटाने के बाद एकदम ठंडा होने के बाद डाला जाता है |सभी गुणवर्धक रचक आप अन्य पेस्ट तैयार करने के समान ही पानी में घोलने के बाद ही मिलायेंगे,परन्तु सुगंध अभी नहीं मिलाई जाती |फोम बूस्टर ,सोडियम परबोरेट और एंजाइम के साथ पूरी तरह ठन्डे हो चुके पाउडर में मिलाई जाती है |
सबसे अधिक लागत इस गरम कपड़े के निर्माण तथा इसके लगाई जाने वाली मशीनों और जुगाड़ो पर आती है | पांच छः मीटर ऊंचा और लगभग इतना ही लम्बा चौड़ा यह विशिष्ट कमरा बनवाया जाता है | इसमें कोई खिड़की ,रोशनदान और आलमारी नहीं बनवाई जाती |दरवाजा भी छोटा और एयर टाईट बंद होने वाला बनवाया जाता है ,जिसे कभी-कभी ही खोला जाता है |तैयार पाउडर को निकालने के लिए आधे मीटर व्यास के एक या दो पाइप लगवाए जाते है |स्टील के बने ये काफी लम्बे पाइप कम्प्रेशर से जुड़े होते है और तैयार पाउडर को वायु के दबाव से खींचकर दुसरे कमरे में एकत्र करते है |
गरम हवा के निकास के लिए कमरे की छत पर एक लम्बी चिमनी बनवाई जाती है ,जिससे दबाव के साथ निकलती गर्म वायु के साथ पाउडर उड़कर बाहर ना जा सके |पाउडर तैयार करते समय इस कमरे का तापमान ढाई सौ से चार सौ सेंटीग्रेट रहना अनिवार्य है |इस प्रयोजन के लिए कुछ हीटर तो इस कमरे की चारो दीवारों पर लगाये ही जाते है ,एकदम गरम वायु के प्रवाह की व्यवस्था भी की जाती है |कमरों की चारो दीवारों पर दर्जनों पाइप लगाये जाते है ये पाइप इस प्रकार सेट किये जाते है की इनके सिरे कुछ सेंटीमीटर से लेकर एक मीटर तक बाहर निकले रहे,जिससे कमरा सभी स्थानों पर समान रूप से गरम बना रहे |केवल हीटर पाइपो के सिरे तथा स्प्रे मशीन का नोजल ही कमरे के अन्दर रहते है ,अन्य सभी वस्तुए कमरे के बाहर इसकी दीवारों से काफी दूर ही रहती है |
काफी अधिक मात्रा में बहुत अधिक गरम वायु निरंतर कमरे में जाते रहना अनिवार्य है |इस प्रयोजन के लिए स्टील की मोटी चादरों का बहुत बड़ा ओवन ,अर्थात भट्ठी बनवाकर उसकी छत तथा बाह्य दीवारों से मिलाकर अस्बस्ट्स की बनी ईंटो से एक कमरा जैसा बनवा दिया जाता है ,जिससे ताप बाहर ना निकल सके |इससे कम्प्रेशर द्वरा वायु अन्दर आती रहती है और पाइप लाइनों के माध्यम से कमरे के अन्दर सतत रूप से जाती रहती है |कमरे के बाहर दो टैंक बनवाए जाते है ,जिनमे एक की क्षमता बालमिल से कुछ अधिक होती है ,तो दुसरे की पांच सौ लीटर के आसपास|इन दोनों में ही बहुत बड़े माप के एजीटेटर लगवाए जाते है और साथ ही शक्तिशाली पंप भी |
बालमिल में यह मिश्रण इतने पतले रूप में तैयार किया जाता है कि गरम कमरे के अन्दर लगे फव्वारों के नोजल से यह आसानी से बारीक बूंदों के रूप में सतत रूप से निकलता रहे| बालमिल से यह मिश्रण एक टैंक में जाता है और उस टैंक में भी एजीटेटरो से इसे निरंतर घुमाया जाता है | इस टैंक में यह मिश्रण फव्वारों से जुड़े टैंको तक जाता रहता है | इन फव्वारों को स्प्रे मशीन कहा जाता है | तैयार तरल मिश्रण को स्प्रे मशीन में लगा पंप टंकी से यह मिश्रण लेकर वायु के भारी दबाव के साथ बूंदों के रूप में इस कमरे में उडाता रहता है | गरम हवा इन बूंदों को वायुमंडल में ही सुखा देता है ,फलस्वरूप फुसफुसे दानेदार पाउडर के रूप में परिवर्तित होकर यह तैयार डिटर्जेंट कमरे के फर्श पर गिरता रहता है |
सर्फ़ एक्सेल टाइप इस डिटर्जेंट पाउडर के फार्मूले का वर्णन हम अंत में इसलिए कर रहे है कि आप शायद ही यह प्लांट लगा सके ;क्योकि इसके लिए आपको हजारो वर्ग मीटर स्थान 100 करोड़ से ज्यादा रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी |सबसे छोटा यूनिट लगाने पर भी चालीस से पचास करोड़ रूपए लग ही जायेंगे |
पेस्ट को सुखाकर नहीं ,बल्कि उसका पतला घोल बनाकर तथा उस घोल को ढाई सौ से लेकर चार सौ डिग्री सेंटीग्रेट गर्म कमरे में विद्युत् संचालित हैवी ड्यूटी फव्वारों से बूंदों के रूप में उड़ाकर सुखाया जाता है | घोल तैयार करने के लिए दो हजार से लेकर पाच हजार लीटर की क्षमता की चार-पांच अथवा अधिक बालमिलो का प्रयोग किया जाता है | छोटी बालमिलो के समान ही इस बालमिल का ड्रम अपने आधार पर दस से पंद्रह चक्कर प्रति मिनट घूमता है |
ड्रम में कुल क्षमता की लगभग 20 प्रतिशत स्टील की चार पांच सेंटीमीटर व्यास की गोलिया पड़ी रहती है | फार्मूले में दिए गए सभी रचक निश्चित अनुपात में इस ड्रम में डाल दिए जाते है और ड्रम का ढक्कन बंद कर मशीन चालु कर दि जाती है | ड्रम के घुमने पर उसमे भरे रचक और गोलियां अनियंत्रित गति से लोटपोट होने लगती है ,अतः सभी रचक आपस में घुलने-मिलने ,पीसने आदि होने लगते है |
फार्मूला इस प्रकार है:
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फास्फेटो में मैल काटने की सर्वाधिक क्षमता ट्राई सोडियम फॉस्फेट में होती है |यद्यपि यह महंगा होता है ,परन्तु इसका प्रयोग करते समय बीस प्रतिशत तक कम neutralize एसिड स्लरी तो मिलाई ही जाती है ,मैल काटने वाले अन्य रसायन भी मिलाना अनिवार्य नहीं है |दोस्तों गीली विधि से तैयार किये जाने वाले किसी भी डिटर्जेंट में सोडा ऐश का प्रयोग नहीं होता ;क्योकि पानी के संपर्क में आते ही तीव्र प्रतिक्रिया करने के बाद सोडा सामान्य मिट्टी बनकर रह जाता है ,परन्तु ट्राई सोडियम फॉस्फेट के साथ प्रयोग करने पर सोडा ऐश सामान्य मिट्टी न बनकर अपनी रासायनिक प्रक्रिया द्वारा मैल काटने की शक्ति और अधिक बढ़ा देता है |
एक टन पाउडर बनाने के लिए फार्मूला:=
1.ट्राई सोडियम फॉस्फेट (T.S.P.)-500kg.
2.सोडा ऐश (Soda ash)-170kg.
3.सोडियम सिलिकेट (sodium silicate)-100kg.
4.डोडीसाइल बेंजीन सल्फोनिक एसिड (D.D.B.S) -200kg.
5.कार्बोक्सी मिथाइल सेल्यूलोस (C.M.C.)-20kg.
6.ऑप्टिकल व्हाइटनर (Optical Whitener)-2kg.
7.एसिड ब्लू डाई (Acid blue)-500gm.
8.ताज़ा पानी (Fresh water)-120 liter.
सिलिकेट को पचास लीटर पानी में कड़ाही में गरम करके घोलने तथा झाग हटाने के बाद एकदम ठंडा होने के बाद डाला जाता है |सभी गुणवर्धक रचक आप अन्य पेस्ट तैयार करने के समान ही पानी में घोलने के बाद ही मिलायेंगे,परन्तु सुगंध अभी नहीं मिलाई जाती |फोम बूस्टर ,सोडियम परबोरेट और एंजाइम के साथ पूरी तरह ठन्डे हो चुके पाउडर में मिलाई जाती है |
गरम कमरे पाउडर तैयार करना
सबसे अधिक लागत इस गरम कपड़े के निर्माण तथा इसके लगाई जाने वाली मशीनों और जुगाड़ो पर आती है | पांच छः मीटर ऊंचा और लगभग इतना ही लम्बा चौड़ा यह विशिष्ट कमरा बनवाया जाता है | इसमें कोई खिड़की ,रोशनदान और आलमारी नहीं बनवाई जाती |दरवाजा भी छोटा और एयर टाईट बंद होने वाला बनवाया जाता है ,जिसे कभी-कभी ही खोला जाता है |तैयार पाउडर को निकालने के लिए आधे मीटर व्यास के एक या दो पाइप लगवाए जाते है |स्टील के बने ये काफी लम्बे पाइप कम्प्रेशर से जुड़े होते है और तैयार पाउडर को वायु के दबाव से खींचकर दुसरे कमरे में एकत्र करते है |
गरम हवा के निकास के लिए कमरे की छत पर एक लम्बी चिमनी बनवाई जाती है ,जिससे दबाव के साथ निकलती गर्म वायु के साथ पाउडर उड़कर बाहर ना जा सके |पाउडर तैयार करते समय इस कमरे का तापमान ढाई सौ से चार सौ सेंटीग्रेट रहना अनिवार्य है |इस प्रयोजन के लिए कुछ हीटर तो इस कमरे की चारो दीवारों पर लगाये ही जाते है ,एकदम गरम वायु के प्रवाह की व्यवस्था भी की जाती है |कमरों की चारो दीवारों पर दर्जनों पाइप लगाये जाते है ये पाइप इस प्रकार सेट किये जाते है की इनके सिरे कुछ सेंटीमीटर से लेकर एक मीटर तक बाहर निकले रहे,जिससे कमरा सभी स्थानों पर समान रूप से गरम बना रहे |केवल हीटर पाइपो के सिरे तथा स्प्रे मशीन का नोजल ही कमरे के अन्दर रहते है ,अन्य सभी वस्तुए कमरे के बाहर इसकी दीवारों से काफी दूर ही रहती है |
Surf excel kaise banaye
काफी अधिक मात्रा में बहुत अधिक गरम वायु निरंतर कमरे में जाते रहना अनिवार्य है |इस प्रयोजन के लिए स्टील की मोटी चादरों का बहुत बड़ा ओवन ,अर्थात भट्ठी बनवाकर उसकी छत तथा बाह्य दीवारों से मिलाकर अस्बस्ट्स की बनी ईंटो से एक कमरा जैसा बनवा दिया जाता है ,जिससे ताप बाहर ना निकल सके |इससे कम्प्रेशर द्वरा वायु अन्दर आती रहती है और पाइप लाइनों के माध्यम से कमरे के अन्दर सतत रूप से जाती रहती है |कमरे के बाहर दो टैंक बनवाए जाते है ,जिनमे एक की क्षमता बालमिल से कुछ अधिक होती है ,तो दुसरे की पांच सौ लीटर के आसपास|इन दोनों में ही बहुत बड़े माप के एजीटेटर लगवाए जाते है और साथ ही शक्तिशाली पंप भी |
बालमिल में यह मिश्रण इतने पतले रूप में तैयार किया जाता है कि गरम कमरे के अन्दर लगे फव्वारों के नोजल से यह आसानी से बारीक बूंदों के रूप में सतत रूप से निकलता रहे| बालमिल से यह मिश्रण एक टैंक में जाता है और उस टैंक में भी एजीटेटरो से इसे निरंतर घुमाया जाता है | इस टैंक में यह मिश्रण फव्वारों से जुड़े टैंको तक जाता रहता है | इन फव्वारों को स्प्रे मशीन कहा जाता है | तैयार तरल मिश्रण को स्प्रे मशीन में लगा पंप टंकी से यह मिश्रण लेकर वायु के भारी दबाव के साथ बूंदों के रूप में इस कमरे में उडाता रहता है | गरम हवा इन बूंदों को वायुमंडल में ही सुखा देता है ,फलस्वरूप फुसफुसे दानेदार पाउडर के रूप में परिवर्तित होकर यह तैयार डिटर्जेंट कमरे के फर्श पर गिरता रहता है |
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